शरद पूर्णिमा, हिन्दू पंचांग के अनुसार आश्विन मास की पूर्णिमा को कहते हैं। यह शरद ऋतु की शुरुआत का परिचय देता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, पूरे वर्ष में केवल इसी दिन चन्द्रमाँ सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है। हिन्दू धर्म में इस दिन कोजागर व्रत मनाया गया है। मान्यता है कि इस रात्रि को चन्द्रमा की किरणों से अमृत झड़ता है। तब से प्रत्येक वर्ष इस दिन भारत में खीर बनाकर चाँदनी रात में रखने की परंपरा बनी हुई है। अन्य मान्यताओं के अनुसार शरद पूर्णिमा की रात देवी लक्ष्मी पृथ्वी का भ्रमण करती है। इस दिन चंद्रमा, माता लक्ष्मी तथा भगवान विष्णु की विशेष पूजा की जाती है।
शरद पूर्णिमा तथा चंद्र ग्रहण : धार्मिक मान्यताओं के अनुसार चंद्र ग्रहण का सूतक काल 9 घंटे पहले से ही प्रारंभ हो जाता है जिस कारण दोपहर 2:52 के बाद से किसी भी प्रकार के धार्मिक कार्य खाना बनाना तथा खाना नहीं खाया जाता। चंद्र ग्रहण 29 अक्टूबर की देर रात 1:05 से 2:22 तक रहेगी।
सूतक काल के दौरान, खीर कैसे बनाएं तथा उसका सेवन कैसे करें : ग्रहण तथा सूतक कल के दौरान किसी भी प्रकार के शुभ कार्य नहीं करने चाहिए ना ही खाना बनाना चाहिए और ना ही खाना चाहिए लेकिन शरद पूर्णिमा की खास मान्यता है कि इस दिन खीर बनाकर चांदनी रात में रखा जाता है इसके बाद उसका सेवन किया जाता है। लेकिन ग्रहण के कारण कुछ समस्याएं देखने को मिल रही है। सूतक काल के दौरान दूध में तुलसी के कुशा डालकर रखने से दूध शुद्ध रहेगा इसके बाद इसका प्रयोग खीर बनाने में कर सकेंगे। ग्रहण पूर्ण होने के पश्चात स्नान आदि कर खीर बनाने के बाद उसे चंद्रमा के नीचे खुले आसमान में छोड़ दे। इसके पश्चात चंद्रास्त होने के बाद उस खीर को प्रसाद के रूप में ग्रहण करें तथा परिवार में सबको बांट सकते हैं। इससे ग्रहण का कोई भी दुष्प्रभाव खीर पर नहीं पड़ेगा तथा उसकी में चंद्रमा के औषधीय व दैविक गुणयुक्त प्रसाद का सेवन कर सकते हैं।