रांची : झारखंड के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने झारखंड मंत्रालय स्थित सभागार में अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति, अल्पसंख्यक एवं पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग द्वारा आयोजित वन अधिकार अधिनियम, 2006 के अंतर्गत ‘अबुआ बीर अबुआ दिशोम अभियान’ के शुभारम्भ किया .
झारखंड में 30% वन क्षेत्र हैं। जंगल-झाड़ मिलाकर देखें तो यह 50% के करीब है। यहां के 80% लोग खेती-बाड़ीपर ही निर्भर हैं। मात्र 20% लोग जो बाजार और शहरों में है, बाकी सभी लोग खेती कार्य से ही जीवनयापन करते हैं। दूसरे राज्यों को देखें जहां आदिवासियों की बहुलता कम है लेकिन वहां पर अधिकार के तहत वन पट्टों का वितरण निमित बेहतर कार्य हुआ है। मुझे लगता है कि कोई भी कार्य आप सभी अधिकारी ने अगर आज ठान लिया तो वह पूर्ण नहीं होगा ऐसा हो ही नहीं सकता है। झारखंड अलग हुए इतने वर्ष बाद भी वन अधिकार अधिनियम के प्रावधानों की गंभीरता पर हम लोगों ने ध्यान नहीं दिया है। अगर हम आज इस मुहिम पर ध्यान नहीं दिए होते तो कुछ वर्षों बाद फॉरेस्ट राइट एक्ट के विषय में चर्चा करने की आवश्यकता नहीं पड़ती, क्योंकि इतने गंभीर विषय को पूर्ण रूपेण ठंढे बस्ते पर डालने का प्रयास किया गया था। अब हमारी सरकार की ‘अबुआ बीर अबुआ दिशोम अभियान’ के तहत वनपट्टा वितरण पर विशेष फोकस है।इस राज्य के भौगोलिक और इस राज्य के अंदर चल रहे विकास की गतिविधियां आने वाले दिनों में एक दूसरे से परस्पर टकराव की स्थिति उत्पन्न करेगा। वर्तमान में जो खेती योग्य जमीन है उसमें भी कोयला निकाला जा रहा है। आज नहीं तो कल वह खनिज संपदा समाप्त होगा। खनन कंपनियां खनिज संपदा निकालकर ऐसी स्थिति में छोड़ेंगे जिसकी व्याख्या करना मुश्किल है। जो किसान विस्थापित हो रहा है उसका अस्तित्व रहेगा कि नहीं। जहां आज धान की खेती हो रही है, क्या खनन कार्य के बाद उस जमीन पर फिर से वैसी ही खेती हो पाएगी क्या? हमें इस और भी ध्यान देने की जरूरत है।जिला अधिकारियों से कहा कि जिलों में आपकी भूमिका महत्वपूर्ण होती है। आप सभी की कार्यशैली राज्य के विकास को बेहतर दिशा देने का काम करती है। आप अपनी कार्यशैली में बदलाव लाकर लोगों के बीच उदाहरण पेश करें। ‘अबुआ बीर अबुआ दिशोम अभियान’ का समय-समय पर गहन रिव्यू भी किया जाएगा। इसलिए इस विषय पर विशेष रूप से ध्यान देते हुए कार्य करना है। आदिवासी समाज कभी भी पेड़ों को नुकसान नहीं पहुंचता क्योंकि उसे पता है यही उसका जीवन है। मुख्यमंत्री ने सभी अधिकारियों से आग्रह किया कि वे अपने कार्यालय परिसरों तथा आवासीय परिसरों पर वृक्षारोपण कर हरा-भरा करें। वनपट्टा देने के अभियान को सैचुरेट नही करेंगे तो कुछ माफिया किस्म के लोग फिर जंगलों में घुसकर पेड़ की धड़ल्ले से कटाई करेंगे। अगर हमसभी लोग एक मजबूत कार्ययोजना बनाते हुए अभियान के उद्देश्य को को पूरा कर लेते हैं तो आने वाले समय में जंगलों में जो लोग बसे हैं, जिन्हें अभी अतिक्रमणकारी के रूप में देखा जाता है वे इनक्रोचर नजर नहीं आएंगे। नहीं तो यह परस्पर चलता रहेगा। हम शहर में अतिक्रमण के दंश से जूझ रहे हैं। शहर में इसे रोकना संभव नहीं है लेकिन गांव में हम आज भी इस काम को रोक सकते हैं। लोगों को उनका हक और अधिकार देकर। जहां तक जागरूकता की बात है तो यहां के आदिवासियों और वनवासियों में इसकी कमी नहीं है। कमी है तो सिस्टम के अंदर कार्य करने वाले लोगों की इच्छा शक्ति में। कार्यशैली में काम को लटकाने का तो हम लोगों के पास भरपूर उपाय है लेकिन उसका रास्ता हम कैसे निकले इस पर पसीने छूटने लगते हैं। पता नहीं ऐसा क्यों होता है। आप सभी सरकार की चुनौती को मिशन मानकर आगे बढ़ें। हमारी सरकार इस अभियान से एक ऐसी व्यवस्था खड़ी करना चाहती है ताकि आने वाले समय में इसका असर दिखाई दे। आज अगर हम इस अभियान के तहत प्रतिबद्धता के साथ कार्य करेंगे तो 10 साल के बाद इसका जो परिणाम होगा वह बेहतर नजर आएगा। जिसपर आपको भी गर्व होगा।अंग्रेजों द्वारा आदिवासियों को माइग्रेट कर विभिन्न जगह ले जाया गया ताकि उनके लिए वे खेती का कार्य, पेड़ लगाने का कार्य कर सके। आदिवासियों में जंगलों को बचाने की क्षमता है। वन विभाग कार्यशैली में बदलाव लाकर वनों को बचाने के प्रति विशेष कार्य करें। व्यवस्था में आपको जो जिम्मेवारी मिली है उसका पालन करें। आप सभी अधिकारी कार्यों के प्रति ईमानदारी और प्रतिबद्धता के साथ अपनी भूमिका का निर्वहन करें।