नई दिल्ली :भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद व सीजीआईएआर जेंडर इम्पेक्ट प्लेटफार्म द्वारा ‘अनुसंधान से प्रभाव तक: न्यायसंगत और अनुकूल कृषि खाद्य प्रणालियों की दिशा में बढ़ते कदम’ विषय पर आयोजित 4 दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू ने किया। समारोह में केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री, कैलाश चौधरी व शोभा करंदलाजे, कृषि सचिव, मनोज अहूजा, आईसीएआर के महानिदेशक डॉ. हिमांशु पाठक, सीजीआईएआर के कार्यकारी प्रबंध निदेशक डॉ. एंड्रयू केम्पबेल, दक्षिण एशिया क्षेत्रीय निदेशक डॉ. टेमिना ललानी शरीफ, जेंडर प्लेटफार्म निदेशक डॉ. निकोलीन डे हान विशेष रूप से उपस्थित थे।
मुख्य अतिथि राष्ट्रपति श्रीमती मुर्मू ने सम्मेलन में राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय प्रतिनिधियों व वैज्ञानिक समुदाय को संबोधित करते हुए कहा कि यदि कोई समाज न्याय रहित है, तो उसकी समृद्धि के बावजूद अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। कोविड-19 महामारी ने कृषि-खाद्य प्रणालियों और समाज में संरचनात्मक असमानता के बीच मजबूत संबंध भी सामने ला दिया है। वैश्विक स्तर पर हमने देखा है कि महिलाओं को लंबे समय तक कृषि-खाद्य प्रणालियों से बाहर रखा गया जबकि वे कृषि संरचना के सबसे निचले पिरामिड का बड़ा हिस्सा हैं, लेकिन उन्हें निर्णय लेने वालों की भूमिका निभाने के लिए सीढ़ी पर चढ़ने के अवसर से वंचित किया जाता है। दुनियाभर में, उन्हें भेदभावपूर्ण सामाजिक मानदंडों और ज्ञान, स्वामित्व, संपत्ति, संसाधनों व सामाजिक नेटवर्क में बाधाओं द्वारा रोका जाता है। उनके योगदान को मान्यता नहीं दी गई, उनकी भूमिका को हाशिए पर रखा गया, कृषि-खाद्य प्रणालियों की पूरी श्रृंखला में उनके योगदान को नकार दिया गया है। इस कहानी को अब बदलने की जरूरत है। भारत में हम विधायी और सरकारी हस्तक्षेपों के माध्यम से महिलाओं को और अधिक सशक्त होने के साथ उन परिवर्तनों को देख रहे हैं। आधुनिक महिलाएं अबला नहीं, बल्कि सबला हैं, यानी असहाय नहीं, बल्कि शक्तिशाली हैं। हमें न केवल महिला विकास बल्कि महिला नेतृत्व वाले विकास की जरूरत है। उन्होंने कहा कि हमारी कृषि-खाद्य प्रणालियों को अधिक न्यायसंगत, समावेशी और न्यायसंगत बनाना न केवल वांछनीय है बल्कि धरा और मानव जाति की भलाई के लिए महत्वपूर्ण भी है। जलवायु परिवर्तन एक अस्तित्वगत खतरा है, हमें अभी व तेजी से कार्रवाई करने की जरूरत है। जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वार्मिंग, बर्फ पिघलने और प्रजातियों के विलुप्त होने से खाद्य उत्पादन बाधित हो रहा है और कृषि-खाद्य चक्र भी टिकाऊ और पर्यावरण के अनुकूल नहीं है। कृषि-खाद्य प्रणालियों को दुष्चक्र से बाहर निकालने के लिए चक्रव्यूह तोड़ने की जरूरत है। उन्होंने जैव विविधता बढ़ाने व पारिस्थितिकी तंत्र बहाल करने की आवश्यकता पर भी जोर दिया, ताकि सबके लिए अधिक समृद्ध व न्यायसंगत भविष्य के साथ कृषि-खाद्य प्रणालियों के माध्यम से खाद्य और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकें। पारिस्थितिक रूप से टिकाऊ, नैतिक रूप से वांछनीय, आर्थिक रूप से किफायती व सामाजिक रूप से उचित उत्पादन हेतु अनुसंधान की आवश्यकता है, जो इन लक्ष्यों तक पहुंचने के लिए परिस्थितियों को सक्षम कर सकें। उन्होंने कहा कि कृषि-खाद्य प्रणालियों को कैसे बदला जाएं, इसकी एक व्यवस्थित समझ की आवश्यकता है। कृषि-खाद्य प्रणालियां लचीली व चुस्त होनी चाहिए, ताकि वे सभी के लिए पौष्टिक व स्वस्थ आहार को अधिक सुलभ, उपलब्ध और किफायती बनाने के लिए झटके व व्यवधानों का सामना कर सकें, उन्हें अधिक न्यायसंगत व टिकाऊ होना चाहिए।