रांची (Ranchi): झारखंड के तत्कालीन राज्यपाल द्वारा स्थानीय नीति, मॉब लिंचिंग और ओबीसी आरक्षण विधेयक को वापस किये जाने को लेकर जेएमएम ने अपना पक्ष रखा। झामुमो के महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य ने मीडिया को संबोधित करते हुए कहा कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 200 एवं झारखण्ड विधानसभा की प्रक्रिया तथा कार्य संचालन के नियम-98 (1) के तहत जो भी विधेयक विधानसभा से पारित होता है वो विधेयक विधानसभा का प्रॉपर्टी होता है। वो विधेयक राज्यपाल के अनुशंसा के लिए विधानसभा सचिवालय के द्वारा भेजा जाता है। ये सिर्फ झारखंड ही नहीं पूरे देश के राज्यों के लिए यही नियम है। भारत के संविधान के अनुच्छेद 200 ये साफ कहता है कि जो विधेयक कार्य होंगे उसकी जो अनुमति है वो राज्यपाल और राष्ट्रपति के द्वारा निर्णय ली जाती है।

विधेयक पर विचार करने के लिए विशेषज्ञों से राय लें राज्यपाल -सुप्रियो भट्टाचार्य
उन्होंने कहा कि राज्य के राज्यपाल चार स्थितियों में काम करती है। या तो वो विधेयक को अपनी सहमति प्रदान कर देते हैं या उनको कुछ त्रुटियां लगती है तो वो विधानसभा से अवगत कराते हैं। या विधेयक पर विचार करने के लिए विशेषज्ञों से राय ले सकते हैं। या फिर अंतिम निर्णय के लिए राष्ट्रपति भवन तक भेज सकते हैं। इससे पहले भी यह परंपरा रही है कि जो भी विधेयक में कोई दिक्कतें आ रही थी तो राज्यपाल के द्वारा एक संदेश भेजा जाता था। उन्होंने कहा जब द्रौपदी मुर्मू झारखंड की राज्यपाल थीं तब उन्होंने सीएनटी एसपीटी एक्ट पर जब संशोधन हुआ तब उन्होंने एक संदेश भेजा कि क्यों इस विधेयक को लौटा रहीं हैं।












