रांची :झारखंड पेरेंट्स एसोसिएशन के प्रांतीय प्रवक्ता सह हिंदी साहित्य भारती के उपाध्यक्ष संजय सर्राफ ने कहा है कि हर साल 26 जून को ‘नशीली दवाओं के दुरुपयोग और अवैध तस्करी के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय दिवस’ मनाया जाता है। इस दिन का उद्देश्य लोगों को नशे की लत और गैरकानूनी ड्रग्स के व्यापार के खतरों के बारे में जागरूक करना है। यह दिवस 1987 में संयुक्त राष्ट्र महासभा के निर्णय के बाद शुरू हुआ था, ताकि दुनियाभर के देश मिलकर नशे की समस्या से लड़ सकें और एक नशामुक्त समाज बना सकें।हर वर्ष 26 जून को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा घोषित अंतर्राष्ट्रीय नशा निरोधक व अवैध तस्करी निरोधक दिवस मनाया जाता है। यह दिवस मूलतः 7 दिसंबर 1987 को प्रस्तावित किया गया था, जिसके अनुसार 26 जून को वैश्विक स्तर पर नशा उन्मूलन के लिए जागरूकता बढ़ाने और सहयोग को मजबूत करने का समय माना गया था,नशा और तस्करी वैश्विक स्वास्थ्य, सामाजिक व आर्थिक संकट हैं। यह न केवल व्यक्तियों के जीवन को प्रभावित करती है, बल्कि परिवार, समुदाय, न्यायप्रणाली और स्वास्थ्य तंत्र पर भी भारी बोझ डालती है। इस दिवस का मुख्य उद्देश्य समाज में इस समस्या को पहचानना, रोकथाम की दिशा में राजनीतिक इच्छाशक्ति उत्पन्न करना, मानवाधिकार-सम्मत उपाय अपनाना और संपोषित नीतियों को बढ़ावा देना है। दुनिया को यह संदेश देना चाहता है कि शिक्षा, मानसिक स्वास्थ्य सेवाएँ, जोखिम वाले समुदायों के लिए हस्तक्षेप और पुनर्वास उचित तरीके हैं, न कि दण्डात्मक कार्रवाई मात्र, इस वर्ष 2025 के लिए अंतर्राष्ट्रीय नशा निषेध दिवस की थीम है-“बाधाओं को तोड़ना सभी के लिए रोकथाम,उपचार और पुनर्प्राप्ति” हर साल थीम के जरिए नशे की सबसे गंभीर समस्याओं और उनके समाधान पर ध्यान केंद्रित किया जाता है। भारत में- नशा मुक्त भारत अभियान जैसे राष्ट्रीय कार्यक्रम के माध्यम से शिक्षा, समुदाय संलिप्तता और इलाज व पुनर्वास को बढ़ावा दिया जा रहा है।समाज-आधारित सहभागिता की भूमिका समुदाय, स्कूल, नागरिक समाज, स्वास्थ्य पेशेवर और नीति निर्माता साथ आकर सामूहिक गतिविधियाँ-जैसे जागरूकता सेमिनार, पोस्टर प्रतियोगिताएँ, सोशल मीडिया अभियान-रूपांतरित समाधानों को आगे ला सकते हैं। वैश्विक अभियानों के माध्यम से स्वास्थ्य-केन्द्रित दृष्टिकोण को बढ़ावा मिल रहा है। 26 जून सिर्फ एक अंक दिनांक नहीं, बल्कि वैश्विक प्रतिबद्धता का प्रतीक है-मानवाधिकार, स्वास्थ्य, विज्ञान, और संवेदनशीलता पर आधारित रोकथाम के लिए। नशा केवल इंसान की समस्या ही नहीं बल्कि राष्ट्रों की सामूहिक जिम्मेदारी है। हमें सामाजिक प्रतिबद्धता, संस्थागत समर्थन और व्यक्ति-केंद्रित नीतियों के माध्यम से एक ऐसा समाज बनाना है जहां नशा न सिर्फ़ रोका जा सके, बल्कि संपूर्ण पुनर्वास की राह प्रशस्त हो सके।
मुख्य सचिव की अध्यक्षता में झारखंड ट्रांसजेंडर कल्याण बोर्ड की बैठक !
रांची : मुख्य सचिव अलका तिवारी ने सरकारी योजनाओं का लाभ देने के लिए ट्रांसजेंडरों का राज्यव्यापी सर्वें कराने का...