रांची : रांची वीमेंस कॉलेज की 75वीं वर्षगांठ के अवसर पर जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग के द्वारा “भारतीय ज्ञान परंपरा : भारत का सामाजिक, सांस्कृतिक एवं भाषायी परिदृश्य” विषय पर दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी 25-26 मार्च, 2025 को आयोजित किया जा रहा है। सेमिनार की रूपरेखा के साथ ब्रोशर आज रांची विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ अजीत कुमार सिंहा को प्राचार्य डॉ सुप्रिया, संगोष्ठी की संयोजक रिया दे, तथा सहसंयोजक डॉक्टर कुमारी उर्वशी, डॉ किरण तिवारी ने सौंपा एवं अनुमति मांगी। यह संगोष्ठी “भारतीय ज्ञान परंपरा सामाजिक, सांस्कृतिक एवं भाषायी परिदृश्य”
विषय पर आयोजित की जा रही है जिसमें जर्मनी से दो विद्वान शामिल हो रहे हैं डॉ नेत्रा पोडियाल, कियल विश्वविद्यालय, जर्मनी तथा डॉ जॉन पीटरसन, कियल विश्वविद्यालय, जर्मनी के अलावा देशभर के विद्वत जनों के शामिल होने की संभावना है। भारतीय ज्ञान परंपरा एक समृद्ध और विविध परंपरा है, जो सदियों से विकसित हुई है। यह परंपरा न केवल ज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक और भाषायी परिदृश्य में भी अपनी अमिट छाप छोड़ती है। भारतीय ज्ञान परंपरा सामाजिक न्याय, समानता और सहयोग की भावना को बढ़ावा देती है। इस परंपरा में वर्णित ज्ञान और मूल्यों ने समाज में शांति, सौहार्द और सहयोग की भावना को बढ़ावा दिया है। भारतीय ज्ञान परंपरा ने सांस्कृतिक परिदृश्य में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है। यह परंपरा भारतीय संस्कृति के विभिन्न पहलुओं को प्रकट करती है, जैसे कि धर्म, दर्शन, कला, साहित्य और विज्ञान। भारतीय ज्ञान परंपरा में वर्णित ज्ञान और मूल्यों ने भारतीय संस्कृति को समृद्ध बनाया है और इसे विश्व संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनाया है। भारतीय ज्ञान परंपरा ने भाषायी परिदृश्य में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है। यह परंपरा विभिन्न भाषाओं में ज्ञान और मूल्यों को प्रकट करती है। इस परंपरा में वर्णित ज्ञान और मूल्यों ने भारतीय भाषाओं को समृद्ध बनाया है और इसे विश्व भाषाओं का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनाया है। वर्तमान समय में भारत की सामाजिक, सांस्कृतिक एवं भाषायी विरासत संकट में है, जिसे पुनः पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है। किसी भी मनुष्य के सर्वांगीण विकास में उसकी भाषा, संस्कृति और समाज अहम भूमिका निभाते हैं। मनुष्य अपने जड़ से अलग होकर प्राणहीन हो जाता है। वह अपने प्राणत्व को खोकर परजीवी की भांति जीवन व्यतीत करता है। मनुष्य को उस जड़ के जड़त्व से जुड़े रहने के लिए अपने भाषा, समाज एवं संस्कृति से जुड़ना होगा। इस संगोष्ठी का प्राथमिक उद्देश्य शोधकर्ताओं, शिक्षाविदों और नई पीढ़ी के नवजवानों को अपनी भाषा और संस्कृति रूपी विरासत के ज्ञान का पता लगाने, उसकी चर्चा करने तथा उसके प्रचार-प्रसार करने के लिए बहुविषयक मंच प्रदान करना है।संगोष्ठी में निम्नलिखित विषयों पर शोधपत्र प्रस्तुतियाँ और चर्चाएँ आमंत्रित की जाएंगी : भारतीय ज्ञान परंपरा एवं भाषाओं की वैश्विक यात्रा,भारतीय ज्ञान परंपरा के परिप्रेक्ष्य में प्राचीन भाषाओं का शिक्षण एवं वैज्ञानिक अध्ययन,भारतीय ज्ञान परंपरा के आलोक में जनजातीय भाषाओं का संरक्षण एवं संवर्धन,आधुनिक परिप्रेक्ष्य में भारतीय दर्शन की प्रासंगिकता,भारतीय ज्ञान परंपरा के संदर्भ में भाषा विज्ञान का अध्ययन,भारतीय भाषाओं के कथा-साहित्य में चित्रित समस्याएँ एवं समाधान,भारतीय ज्ञान परंपरा के परिप्रेक्ष्य में आधुनिक साहित्य में सुधारवादी दृष्टिकोण,भारतीय संस्कृति और साहित्य का अंतःसंबंध,पारंपरिक जनजातीय सामाजिक व्यवस्था, संस्कृति और आधुनिक युग में जनजातीय एवं क्षेत्रीय साहित्य,भारतीय ज्ञान परंपरा में पर्यावरणीय नैतिकता और प्रकृति,भारतीय ज्ञान परंपरा के आलोक में पारंपरिक कलाओं का संरक्षण एवं संवर्धन,भारतीय ज्ञान परंपरा के संदर्भ में सांगीतिक अध्ययन,सामासिक संस्कृति के विकास में भारतीय भाषाओं की भूमिका सीमाएँ और संभावनाएँ,भारतीय ज्ञान परंपरा एवं सांस्कृतिक परिवर्तन पर वैश्वीकरण का प्रभाव,भारतीय ज्ञान परंपरा एवं समाज में लैंगिक समानता के प्रति जागरूकता,सामाजिक बदलाव में युवाओं की भूमिका,
पारंपरिक सांस्कृतिक परिवर्तन के दौर में नारी सशक्तिकरण और चुनौतियां,भारतीय शिक्षा में नैतिक और मूल्य शिक्षा का महत्व,नई शिक्षा नीति 2020 और व्यावसायिक शिक्षा,शिक्षण में पारंपरिक एवं आधुनिक तकनीकों का समन्वय,भारतीय समाज में शिक्षक की भूमिका और जिम्मेदारी,कौशल विकास और व्यावसायिक शिक्षा की भारतीय परंपरा,भारतीय ज्ञान परंपरा और आधुनिक विज्ञान का समन्वय,रोजगारपरक शिक्षा और भारतीय संदर्भ। शोध सारांश भेजने की अंतिम तिथि: 20/03/2025,पंजीकरण की अंतिम तिथि: 22/03/2025,संपूर्ण शोध आलेख भेजने की अंतिम तिथि: 24/03/2025 है। इच्छुक प्रतिभागी अपना शोध सारांश (अधिकतम 200 शब्द) और संपूर्ण शोध आलेख (अधिकतम 2000 शब्द)मंगल/टाइम्स-न्यू रोमन फ़ॉन्ट में ईमेल- iksrweintseminar01@gmail.com पर भेजें। चयनित शोध आलेख पुस्तक के रूप में प्रकाशित
किया जाएगा। शोध आलेख केवल अंग्रेजी या हिंदी भाषा में स्वीकार किया जाएगा। यह सेमिनार हाइब्रिड (ऑनलाइन और ऑफलाइन) मोड में आयोजित किया जाना है।ऑनलाइन पंजीकरण के लिए लिंक : https://forms.gle/k5EjWGfrQgnd7ETL8
पंजीकरण शुल्क : प्राध्यापकों के लिए: रु.2000, शोधकर्ताओं के लिए: रु.1200, विद्यार्थियों के लिए: रु.800 है एवं ऑन द स्पॉट पंजीकरण के लिए: रु.200 अतिरिक्त है।
राज्य में नहीं लागू होगा वक्फ कानून !
रांची : झारखंड मुक्ति मोर्चा के दो दिवसीय केंद्रीय महाधिवेशन के पहले दिन राजनीतिक प्रस्ताव में जातिगत जनगणना, ओबीसी के...