रांची :डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय, रांची में करम पर्व के अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय के कुलपति अंजनी कुमार मिश्र ने करम पर्व हम मानव को प्रकृति के साथ जोड़ने की बात कहते हुए कहा कि यह पर्व सामाजिक समरसता राष्ट्रीय एकता का प्रतीक है। क्योंकि इसमें सभी वर्ग के लोग एक ताल और एक सूर में कदम से कदम मिलाकर चलने का सिख यहां के आदिवासी मूलवासी द्वारा मनाये जाने वाले पवित्र करम पर्व देती है।
सम्मानित अतिथि के रूप में उपस्थित पद्मश्री महाबीर नायक ने करम पर्व को अन्य संस्कृति के साथ जोड़ते हुए कहा कि यह हमारी सांस्कृतिक विरासत है। इससे हम सबों को संरक्षित करने की आवश्यकता पर बल दिया। कार्यक्रम में सम्मानित अतिथि पद्मश्री मुकुंद नायक ने करम पर्व प्रकृति का संरक्षण, संवर्द्धन करने को संदेश देने के बात कहते हुए कहा कि करम जैसे प्रकृति आधारित पर्व को देश और विश्व पटल पर लाने का श्रेय यहां के सभी नौ भाषा-भाषी समुदाय को जाता है जो कि वर्तमान में बहुत ही महत्वपूर्ण एवं प्रासंगिक है। अतः इन सभी नौ भाषाओं की पढ़ाई प्राथमिक, मध्य और हाई स्तर पर करने कराने हेतु सरकार को ध्यान आकर्षित कराया। साथ ही कहा कि इस परंपरा को सही दिशा में ले जाने के लिए भावी पिढ़ि को संचेत किया।
सम्मानित अतिथि के रूप में उपस्थित डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो (डॉ.) सत्यनारायन सिंह मुंडा ने करम पर्व के बारे में शोध करने पर बल देने की बात कही। करम पर्व के आयोजक एवं विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ. धनंजय वासुदेव द्विवेदी ने हम सबों को करम पर्व की शुभकामनाएं एवं बधाई देते हुए कहा कि करम पर्व हमें अपने कर्म के प्रति निष्ठावान, जिम्मेदारी से करने की सिख देती है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए विश्वविद्यालय के छात्र कल्याण संकायाध्यक्ष डॉ. सर्वोत्तम कुमार ने करते हुए कहा कि करम जैसे अनुठी प्रकृति आधारित पर्व जो कि 8000 बीसी पूर्व से कृषि सभ्यता के विकास के साथ जोड़कर देखने की बात कहते हुए कहा कि करम सदियों से हम सबों को प्रकृति के साथ जोड़ते आये हैं, ऐसी अनुठी करम पर्व को पूरे भारत वर्ष में पर्यावरण दिवस के रूप में मनाने की बात कही। साथ उन्होंने कहा कि यह एक संपूर्ण सतत विकास का उदाहरण प्रस्तुत करता है क्योंकि करम पर्व में आर्थिक स्थिरता, जो कि पर्यावरण को क्षति किये बिना विकास सुनिश्चत करता है। सामाजिक स्थिरता जो कि समावेशिक और समानता को बढ़ावा देती है और पर्यावरणीय स्थिरता, जो कि संसाधन संरक्षण और पारिस्थतिक प्रभाव को कम करने पर केंद्रित है।
इसके पूर्व विश्वविद्यालय परिसर में स्थित आखड़ा में विभिन्न विभाग द्वारा उठाये हुए जाउआ को नृत्य-गीत के साथ विधिवत लाकर स्थापित किया गया। फिर पाहान के साथ नृत्य-गीत करते हुए करम डाली के लिए करम पेड़ के पास गया। फिर वहां से करम डाली को विधिवत काट कर लाया गया और पहान प्रो. महेश भगत ने इसे आखड़ा में स्थापित किया। करम डाली की पूजा प्रो. महेश भगत एवं डॉ. जुरन सिंग मानकी द्वारा संपन्न कराया गया।
इस अवसर पर सैकड़ों उपवास की हुई लड़कियां करम डाली के चारों और बैठ कर पूजा अर्चना की करम पूूजा के कथावाचक के रूप में टी. आर. आई. के पूर्व उप निदेशक सोमा सिंह मुंडा ने इसके उत्पति संबंधी करमा-धरमा की कहानी को विस्तृत बतलायें।
कार्यक्रम में आगंतुक अतिथियों का परछन खड़िया विभाग के छात्र-छात्राओं द्वारा किया गया। फिर अतिथियों का स्वागत एवं सम्मान विभाग के शिक्षकों द्वारा अंगवस्त्र देकर किया गया एवं खोरठा विभाग के छात्र-छात्राओं द्वारा स्वागत गीत के रूप अतिथियों का स्वागत किया। करम महोत्सव के अवसर पर उपस्थित सभी अतिथियों, विशिष्ट अतिथियों एवं आगंतुकों का स्वागत जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषाओं के कोर्डिनेटर डॉ. विनोद कुमार ने करते हुए विश्वविद्यालय प्रसासन को इन सभी विभागों के शिक्षकों की कमी, संसाधन की कमी आदि विभिन्न समस्याओं से अवगत कराया। कार्यक्रम को रंगीन बनाते हुए पद्मश्री मुकुंद नायक ने अपने पुराने अंदाज में उत्सव में उपस्थित सबों को झुमने-झुमाने को मजबूर कर दिए।
कार्यक्रम के बीच – बीच में विभिन्न विभाग के छात्र-छात्राओं द्वारा नृत्य-गीत प्रस्तुत होता रहा। जिनमें एक क्रम में खड़िया, खोरठा, नागपुरी, कुड़मालि, मुंडारी, कुड़ुख, पंचपरगनिया, संताली आदि सभी 9 विभागों के नृत्य दलों द्वारा नृत्य-गीत प्रस्तुत कर उत्सव में उपथित सबों को उत्साहित किये। तत्पश्चात सम्मान के साथ करम डाली एवं जाउआ का विसर्जन छात्र-छात्राओं द्वारा किया गया।
इस अवसर पर डोरंडा कॉलेज, रांची के नागपुरी के प्राध्यापक डॉ. यूगेश कुमार महतो, हिंदी के विभागाध्यक्ष डॉ. जिंदर सिंह मुंडा, बीएड. के डॉ. रिमझिम तिर्की, सामाजशास्त्र विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. अभय कृष्ण सिंह, भौतिक के विभागाध्यक्ष अनुपम कुमार, बांगला के विभागाध्यक्ष अनर्बन साहु, एन. सी. सी. के कोर्डिनेटर केप्टन डॉ. गणेश चंद्र बास्के, कुड़मालि के डॉ. निताई चंद्र महतो, कुड़ुख के डॉ. सिता कुमारी, सुश्री सुनिता कुमारी, संताली के डॉ. डुमनी माई मुर्मू, खड़िया के सुश्री शांति केरकेट्टा, मुंडारी के डॉ. शांति नाग, डॉ. दशमी ओड़ेया, खोरठा सुशिला कुमारी, सभी विभाग के शोधार्थीगण, छात्र-छात्राएं, विश्वविद्यालय के कई शिक्षक एवं कर्मचारीगण उपस्थित थे। कार्यक्रम को विधि पूर्वक संपन्न करने के लिए मंच संचालन का कार्य नागपुरी विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ. मनोज कच्छप एवं डॉ. माल्ती बागिशा लकड़ा ने एवं धन्यवाद ज्ञापन संताली विभाग के सहायक प्राध्यपिका डॉ. डुमनी माई मुर्मू ने की।
बताते चलें कि करम पर्व आदिवासी-मूलनिवासी द्वारा बनाये जाने वाला एक महत्वपूर्ण, पवित्र एवं हर्षाे उल्लास के साथ बनाये जाने वाला पर्व है। यह अंतिम रूप से भादर महीने के एकादशी के दिन करम डाली के पूजा-अर्चना के बाद इसके दूसरे दिन विसर्जन के साथ संपन्न होता है।
करम पर्व भाई बहन के पवित्र रिस्ता को मजबूत करता है। और इससे 11, 9, 7 अथवा 5 दिन पूर्व जाउआ को कुंवारी लड़कियों द्वारा किसी जलाशय में उठाया जाता है। जाउआ उठाने वाले लड़कियों को ‘जाउआ माइ’ कहा जाता है। और ये जाउआ की रखवाली एक मां की भांति करती है। फलस्वरूप खिरा को बेटा के रूप में वरदान मिलता है। इस खिरा को भी एक नवजात शिशु की भांति इसकी देख भाल करती है। अतः जाउआ पर्व कुवांरी लड़कियों को शादी के पूर्व मातृत्व का ऐहसास करने-करने कराने का पर्व है। इसमें करम जैसे पेड़ की डाली की पूजा करते हैं जो कि प्रकृति के साथ मानव सभ्यता को जाड़ते हुए पर्यावरण संरक्षण की ओर भी संकेत करती है। इसकी नृत्य शैली में सामुहिकता, समरसता के साथ जीवन जीने की सिख देती है जो कि राष्ट्रीय एकता का प्रतीक है।
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