रांची :मरांडी ने कहा कि दुखद है कि हमारे झारखंड में अब मुआवज़ा कष्ट और आपदा देखकर नहीं, बल्कि राजनीतिक फ़ायदा देखकर दिया जाता है। इसी कारण कड़ाके की ठंड में बेघर हुए परिवारों की ओर सरकार की नज़र नहीं जाती।
कहा कि रिम्स की भूमि पर अतिक्रमण हटाया गया, जिन लोगों के घर तोड़े गए उनकी पीड़ा सबको दिखी, केवल सरकार को छोड़कर। उन्हें मुआवज़ा तो दूर, सांत्वना तक देने कोई नहीं पहुँचा।
कहा कि जिस तरह से हमारे राज्य में सरकार काम कर रही है, ऐसा लगता है कि सब कुछ हाईकोर्ट के भरोसे ही चल रहा है। हर छोटे से लेकर बड़े फैसले तक कार्रवाई को सुचारू करने के लिए लोगों को हाईकोर्ट का सहारा लेना पड़ता है। यहाँ तक कि हाईकोर्ट के आदेशों को भी यह सरकार जितना हो सके टालने का प्रयास करती है,
कहा कि चाहे वह पेसा कानून की बात हो या फिर रिम्स अतिक्रमण का मामला।हेमंत सरकार की संवेदनहीनता के कारण लोगों को इस बार भी राहत पाने के लिए कोर्ट का ही दरवाज़ा खटखटाना पड़ा, ताकि सरकारी अफसरों के भ्रष्टाचार और मिलीभगत की सज़ा उन्हें न मिले जिनके आशियाने उजड़ गए।
मरांडी ने हाई कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि जिसके अनुसर तत्कालीन अंचल अधिकारी, नक्शा स्वीकृत करने वाले अफसर, रांची नगर निगम के बिल्डिंग प्लान अप्रूवल सेक्शन के अधिकारी, निगरानी व नियंत्रण में विफल और इस अनियमितता में संलिप्त सभी सरकारी कर्मचारियों, बिल्डर्स व प्रॉपर्टी डीलर्स पर कार्रवाई की जानी चाहिए। साथ ही मुआवज़े के लिए जुर्माना भी उन बिल्डरों और अधिकारियों से ही वसूला जाना चाहिए।
कहा कि राज्य सरकार से सहयोग की तो नहीं, लेकिन इतनी अपेक्षा ज़रूर है कि कम से कम इस जाँच और कार्रवाई में कोई अड़चन न डाले।
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