रांची :पर्यावरण थिंक टैंक इंटरनेशनल फोरम फॉर एनवायरनमेंट, सस्टेनेबिलिटी एंड टेक्नोलॉजी (iFOREST) की एक नई अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार, झारखंड खनन भूमि के रणनीतिक पुनःउपयोग, मौजूदा ऊर्जा परिसंपत्तियों के बेहतर इस्तेमाल और कम-कार्बन औद्योगिक विकास को बढ़ावा देकर भारत की नेट-ज़ीरो लक्ष्य की दिशा में एक अहम भूमिका निभा सकता है।
यह रिपोर्ट मंगलवार को आयोजित राज्य-स्तरीय सम्मेलन “झारखंड में न्यायसंगत संक्रमण और हरित विकास के मार्ग” के दौरान जारी की गई। यह अध्ययन झारखंड में कोयला खनन और बिजली, इस्पात, ऑटोमोबाइल और अन्य प्रमुख उद्योगों से जुड़े संक्रमण अवसरों का पहला विस्तृत और समग्र आकलन प्रस्तुत करता है। चूंकि राज्य के सकल राज्य मूल्य वर्धन (GSVA) में उद्योगों की हिस्सेदारी 41 प्रतिशत से अधिक है, इसलिए यह रिपोर्ट भारत की कम-कार्बन विकास रणनीति में झारखंड के केंद्रीय महत्व को रेखांकित करती है।
अध्ययन में बताया गया है कि यदि समय रहते योजना बनाई जाए, तो कोयला खनन से होने वाला संक्रमण राज्य में हरित निवेश और बड़े पैमाने पर रोजगार सृजन का अवसर बन सकता है। वर्तमान में बंद और गैर-संचालित कोयला खदानों से 11,000 हेक्टेयर से अधिक भूमि पहले से ही उपलब्ध है। इसके अलावा, खनन योग्य भंडार के समाप्त होने और घटती आर्थिक व्यवहार्यता के कारण लगभग 60 प्रतिशत खदानें अगले एक दशक में संक्रमण के चरण में प्रवेश करेंगी। इन खदानों से जुड़ी भूमि का योजनाबद्ध और चरणबद्ध पुनःउपयोग विशेष रूप से धनबाद, बोकारो और रामगढ़ जैसे जिलों में बड़े भू-भाग को नए आर्थिक उपयोग के लिए खोल सकता है।
रिपोर्ट में यह भी रेखांकित किया गया है कि झारखंड में हरित संक्रमण को गति देने के लिए नवीकरणीय ऊर्जा के विस्तार की अपार संभावनाएं हैं। राज्य में लगभग 77 गीगावाट की अनुमानित नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता मौजूद है। अध्ययन में सिफारिश की गई है कि पुनःउपयोग की गई खनन भूमि, औद्योगिक बंजर भूमि और जल निकायों—विशेषकर फ्लोटिंग सोलर परियोजनाओं—का पर्यावरणीय रूप से संतुलित तरीके से उपयोग किया जाए। इस प्रक्रिया में पारंपरिक कोयला क्षेत्रों में सार्वजनिक क्षेत्र की ऊर्जा उपयोगिताओं की भूमिका महत्वपूर्ण होगी।
इस्पात क्षेत्र और उससे जुड़ी पूरी मूल्य श्रृंखला को भी अध्ययन में एक बड़े अवसर के रूप में देखा गया है। भारत की कुल कच्चे इस्पात उत्पादन क्षमता का लगभग 12 प्रतिशत झारखंड में स्थित है, जिससे राज्य हरित इस्पात और हरित हाइड्रोजन को अपनाने में अग्रणी बन सकता है। टाटा स्टील और स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड जैसी प्रमुख कंपनियों के नेतृत्व में कम-कार्बन इस्पात तकनीकों को चरणबद्ध रूप से अपनाने से शुरुआती पायलट परियोजनाओं की शुरुआत, हरित हाइड्रोजन का विस्तार और व्यापक रोजगार सृजन संभव हो सकेगा।
ऑटोमोबाइल क्षेत्र को भी रिपोर्ट में एक उभरते हुए अवसर के रूप में चिन्हित किया गया है। जमशेदपुर–आदित्यपुर ऑटो क्लस्टर को सशक्त बनाकर झारखंड पूर्वी भारत में इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) संक्रमण का नेतृत्व कर सकता है। हालांकि, राज्य के लगभग तीन-चौथाई ऑटो-घटक निर्माता सूक्ष्म और लघु उद्यम हैं, इसलिए उन्हें तकनीकी उन्नयन, वित्त तक आसान पहुंच और बाजार की मांग के अनुरूप कौशल विकास के लिए लक्षित समर्थन की आवश्यकता होगी।
iFOREST की निदेशक (जस्ट ट्रांज़िशन एवं क्लाइमेट चेंज) स्रेष्टा बनर्जी ने कहा,
“झारखंड में न्यायसंगत संक्रमण अगले दस वर्षों में राज्य के आर्थिक और औद्योगिक ढांचे को रूपांतरित करने का एक बड़ा अवसर है। भूमि और ऊर्जा परिसंपत्तियों के पुनःउपयोग से राज्य हरित निवेश आकर्षित कर सकता है और संक्रमण से गुजर रहे जिलों में रोजगार के नए अवसर पैदा कर सकता है, जिससे स्थानीय समुदायों को सीधा लाभ मिलेगा। राज्य सरकार उद्योग निवेश को बढ़ावा देने के लिए सरल अनुमति प्रक्रियाओं जैसे कदमों के माध्यम से पहले से ही अनुकूल वातावरण तैयार कर रही है।
अबूबक्कर सिद्दीक पी, आईएएस, सचिव, वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग, झारखंड सरका
किसी भी आर्थिक विकास के लिए भूमि एक अत्यंत महत्वपूर्ण संसाधन होती है। झारखंड के लिए खनन भूमि का पुनःउपयोग और दोबारा इस्तेमाल विकास को आगे बढ़ाने का एक बड़ा अवसर है। साथ ही, हरित विकास को साकार करने के लिए जलवायु और न्यायसंगत संक्रमण से जुड़े पहलुओं को विभिन्न आर्थिक क्षेत्रों की नीतियों और योजनाओं में मुख्यधारा में लाना होगा तथा इसके अनुरूप राज्य बजट में भी समुचित प्रावधान करने होंगे,
निलेंदु कुमार सिंह, चेयरमैन एवं प्रबंध निदेशक, सेंट्रल कोलफील्ड्स लिमिटेड
“अगले 30–40 वर्षों में खनन बंद होने वाला नहीं है, इसलिए हमारे पास सोच-समझकर योजना बनाने का समय है। लेकिन यह योजना ऐसी होनी चाहिए जो भूमि के पुनःउपयोग के माध्यम से, स्थानीय अवसरों, ज्ञान और कौशल के आधार पर सही विकल्प तैयार करे, ताकि लोग स्वाभाविक रूप से नए क्षेत्रों की ओर बढ़ सकें। साथ ही, कोयला उद्योग के लिए यह भी जरूरी है कि उत्सर्जन कम करने और पर्यावरणीय प्रदर्शन बेहतर बनाने के लिए स्वच्छ कोयला, हरित खनन और स्वच्छ परिवहन पद्धतियों को अपनाया जाए,”
जितेंद्र कुमार सिंह, आईएएस, ,सचिव, श्रम, रोजगार एवं कौशल विकास विभाग, झारखंड सरकार
ऊर्जा संक्रमण असल में आजीविका का संक्रमण है। हमें यह प्राथमिकता तय करनी होगी कि किसे आजीविका या कौशल विकास के सहयोग की आवश्यकता है और उसी के अनुसार हस्तक्षेप तैयार करने होंगे। रोजगार की संभावनाएं बढ़ाने के लिए मजबूत कौशल प्रशिक्षण जरूरी है, जिसमें प्रशिक्षण के बाद उम्मीदवारों की नियुक्ति भी सुनिश्चित की जाए। झारखंड इस दिशा में आईटीआई और राज्य कौशल विकास सोसाइटी के माध्यम से ठोस कदम उठा रहा है,
अजय कुमार रस्तोगी, अध्यक्ष, सतत न्यायसंगत संक्रमण टास्कफोर्स, झारखंड सरकार
“झारखंड के लगभग 32 प्रतिशत राजस्व का स्रोत जीवाश्म ईंधन है, इसलिए इस परिवर्तन का प्रभाव काफी व्यापक होगा। सबसे बड़ी चुनौती अनौपचारिक श्रमिकों और उनसे जुड़े पूरे पारिस्थितिकी तंत्र का संक्रमण है, जिसके लिए शिक्षा और वैकल्पिक आजीविका के अवसरों पर विशेष ध्यान देना होगा,”
इस सम्मेलन में झारखंड सरकार, सार्वजनिक क्षेत्र, उद्योग जगत और नागरिक समाज के वरिष्ठ प्रतिनिधियों ने भाग लिया, जिनमें वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग, उद्योग विभाग, कोयला क्षेत्र और न्यायसंगत संक्रमण से जुड़े विशेषज्ञ शामिल थे
रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष:
• बंद और गैर-संचालित कोयला खदानों से तुरंत 11,000 हेक्टेयर से अधिक भूमि उपलब्ध है। अगले 5–10 वर्षों में लगभग 45,000 हेक्टेयर भूमि के पुनःउपयोग की योजना बनाई जा सकती है, जिससे नवीकरणीय ऊर्जा, हरित विनिर्माण, लॉजिस्टिक्स और अन्य गतिविधियों में निवेश के अवसर पैदा होंगे और कोयला-निर्भर जिलों में आर्थिक विविधीकरण को बढ़ावा मिलेगा।
• लगभग ₹16,977 करोड़ के संचयी जिला खनिज फाउंडेशन (DMF) संसाधनों के साथ, झारखंड के पास न्यायसंगत संक्रमण से जुड़े शुरुआती निवेश—जैसे आजीविका के नए साधन, कौशल विकास और सामाजिक कल्याण—को वित्तपोषित करने का मजबूत आधार मौजूद है।
• यह अध्ययन हाल की राष्ट्रीय नीतियों, विशेष रूप से कोल माइन क्लोजर गाइडलाइंस, 2025, के अनुरूप झारखंड के संक्रमण मार्ग को संरेखित करता है, जो न्यायसंगत रूपांतरण और खनन भूमि के पुनःउपयोग को स्पष्ट रूप से मान्यता देती हैं।
• रिपोर्ट अगले दशक के लिए आठ जिलों—धनबाद, बोकारो, रामगढ़, चतरा, हजारीबाग, सरायकेला-खरसावां, पूर्वी सिंहभूम और पश्चिमी सिंहभूम—को संक्रमण के प्रमुख केंद्रों के रूप में चिन्हित करती है।
• रिपोर्ट में राज्य के लिए एक समग्र न्यायसंगत संक्रमण नीति तैयार करने की सिफारिश की गई है, ताकि विभिन्न क्षेत्रों में समन्वित और प्रभावी क्रियान्वयन सुनिश्चित किया जा सके।
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